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हनुमान जी की आरती – आरती कीजै हनुमान लला की

इस पोस्ट में भगवान श्री हनुमान जी की आरतीआरती कीजै हनुमान लला की प्रस्तुत की गयी है।

पढ़ें – श्री हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

बजरंग बली जी की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर काँपे,
रोग दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनि पुत्र महाबलदायी,
संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीड़ा रघुनाथ पठाए,
लंका जारि सिया सुध लाए॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई,
जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारी असुर संहारे,
सियारामजी के काज संवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े धरा पे।
आनि संजीवन प्राण उबारे॥

पैठि पताल तोरि जमकारे,
अहिरावण की भुजा उखारे॥

बाएं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥

सुर-नर मुनि जन आरती उतारे,
जै जै जै हनुमान उचारें ॥

कंचन थार कपूर लौ छाई,
आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमान जी की आरती गावे,
बसि बैकुंठ परमपद पावै॥

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करवा चौथ की व्रत कथा

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ कहते हैं। इसमें गणेश जी का पूजन करके उन्हें पूजन से प्रसन्न किया जाता है। इस में गेहूं का करवा भरके पूजन किया जाता है। विवाहित लड़कियों के यहाँ चीनी के करवे मायके से भेजे जाते हैं और निम्नलिखित करवाचौथ की कथा (Karvachauth ki Katha) सुनकर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है।

करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा – Karvachauth ki Katha

बहुत समय पहले की बात है। एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे।

एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होने अपनी बहन से भोजन करने के लिए कहा। इस पर बहन ने कहा – भाई, अभी चाँद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूंगी।

बहिन की बात सुनकर भाइयों ने क्या किया कि बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी लाकर उसमें से प्रकाश दिखते हुए बहिन से कहा – बहिन चाँद निकाल आया है। अर्घ्य देकर भोजन कर लो।

यह सुनकर उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चंद्रमा को अर्घ्य दे लो, लेकिन वे इस धोखे को जानती थीं। उन्होंने कहा – बाई जी, अभी चाँद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई तुम्हारे साथ धोखा करके अग्नि का प्रकाश दिखा रहे हैं।

भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान नहीं दिया व भाइयों द्वारा दिखाये गए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए।

इसके बाद उसका पति बहुत बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया। जब उसे अपने की हुई गलती का पता चला तो उसने पश्चाताप किया और गणेश जी से प्रार्थना करते हुए विधि से पुन: चतुर्थी का व्रत करना आरंभ कर दिया और श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने लगी।

इस प्रकार उसके श्रद्धा भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान देकर आरोग्य करने के पश्चात धन संपत्ति से युक्त कर दिया।

इस प्रकार जो छल कपट को त्याग कर श्रद्धा भक्ति से करवा चौथ का व्रत करेंगे वे सब प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जाएँगे।

हे श्री गणेश जी – मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

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गणेश जी की आरती – जय गणेश देवा..

इस पोस्ट में भगवान गणेश जी की आरती – जय गणेश देवा.. प्रस्तुत की गयी है।

गणेश भगवान जी की आरती – जय गणेश देवा

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फूल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

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ओम जय जगदीश हरे आरती

बहुप्रचलित आरती ओम जय जगदीश हरे निम्नलिखित है।

ॐ जय जगदीश हरे आरती

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त ज़नो के संकट, दास ज़नो के संकट,
क्षण में दूर करे।।
ॐ जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिन से मन का,
स्वामी दुख बिन से मन का।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का।।
ॐ जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और ना दूजा, तुम बिन और ना दूजा,
आस करूँ जिसकी।।
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी,
स्वामी तुम अंतरयामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, पार ब्रह्म परमेश्वर,
तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता,
स्वामी तुम पालन करता।
मैं मूरख खलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भरता।।
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राण पती,
स्वामी सबके प्राण पति ।
किस विधि मिलू दयामय, किस विधि मिलु दयामय,
तुमको मैं कुमति।।
ॐ जय जगदीश हरे।

दीन-बन्धु दुःख-हरता, ठाकुर तुम मेरे।
स्वामी रक्षक तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ।
द्वार पड़ा तेरे।।
ॐ जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा।।
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम मन धन परमात्मा, सब कुछ है तेरा,
स्वामी सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझ को अर्पण, तेरा तुझ को अर्पण,
क्या लागे मेरा।।
ॐ जय जगदीश हरे।

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त ज़नो के संकट,
दास जनो के संकट,
क्षण में दूर करे।।
ॐ जय जगदीश हरे।

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दुर्गा जी की आरती : जय अम्बे गौरी…

नवदुर्गा, नवरात्रि, माता की चौकी, देवी जागरण और करवा चौथ के दिन गाई जाने वाली दुर्गा माँ की प्रसिद्ध आरतीजय अम्बे गौरी

दुर्गा जी की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥

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