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प्रायश्चित प्रार्थना – मेहेरबाबा द्वारा प्रदत्त

दोस्तों इस पोस्ट में बाबा प्रेमियों के लिए मेहेरबाबा द्वारा प्रदत्त प्रायश्चित प्रार्थनाहे असीम दया के निधि, प्रभुराज” दी गयी है। हम आशा करते हैं कि हमारी दूसरी पोस्टों की तरह यह पोस्ट भी आपके लिए उपयोगी होगी-

पढ़ें – हे परवरदिगार – मेहेरबाबा द्वारा प्रदत्त प्रार्थना

मेहेरबाबा द्वारा दी गयी प्रायश्चित प्रार्थना – हे असीम दया के निधि, प्रभुराज (मेहेरबाबा द्वारा प्रदत्त)

हे असीम दया के निधि, प्रभुराज !

हम अपने सब पापों के लिए पश्चात्ताप करते हैं – हर एक विचार के लिए जो असत्य, अनुचित या गंदा था; हर एक बोले हुए शब्द के लिए जिसे बोलना हमें उचित न था; और हर एक कर्म के लिए जिसे करना हमें उचित न था।

स्वार्थ से प्रेरित हर एक कर्म, शब्द तथा विचार के लिए; तथा द्वेष प्रेरित हर एक कर्म, शब्द और विचार के लिए हम पश्चात्ताप करते हैं।

विशेषकर हर एक कामुक विचार तथा क्रिया के लिए; ऐसे हर एक वचन के लिए जिसको हमने पूरा नहीं किया; सब असत्य वचनों के लिए; और सभी निंदा, पाखण्ड, दम्भ या लोगों के पीछे उनके दोष बताने के लिए हम अनुताप करते हैं।

और खासकर, दूसरों का नाश करने वाले हर एक कर्म के लिए; दूसरों को दुख देने वाले हर एक शब्द तथा कर्म के लिए; तथा दूसरों पर दुख गिरने की इच्छा करने के लिए हम अनुताप करते हैं।

हे प्रभुराज ! आप हम पर असीम दया करके हमारे किए हुए पापों को क्षमा कीजिये, और वैसे ही आपकी मर्जी के अनुसार विचार करने में, बोलने में तथा कार्य करने में जो हमारी असमर्थता रहती आई है, उसको भी क्षमा कीजिये, यही हमारी प्रार्थना है।

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हे परवरदिगार – मेहेरबाबा द्वारा प्रदत्त प्रार्थना

दोस्तों इस पोस्ट में बाबा प्रेमियों के लिए मेहेरबाबा द्वारा बताई गयी प्रार्थना “हे परवरदिगार” दी गयी है।

हे परवरदिगार – मेहेरबाबा द्वारा दी गयी परवरदिगार प्रार्थना

हे परवरदिगार।

सबके राखनहार और सबकी रक्षा करने वाले।

तुम्हारा कोई आदि नहीं है, और न तुम्हारा कोई अंत है, तुम अद्वैत हो, तुम तुलना से परे हो, और तुम्हारा पार कोई नहीं पा सकता है।

तुम्हारा कोई रंग और रूप नहीं है, तुम आविर्भाव से रहित हो, और तुम गुणातीत हो।

तुम अपार हो और अगाध हो, कल्पना और धारणा से परे हो, शाश्वत और अनश्वर हो।

तुम अखण्ड्य हो, और दिव्य नेत्रों के सिवाय और किसी भी प्रकार से तुम्हें कोई नहीं देख सकता है।

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तुम्हारा अस्तित्व सदैव था, तुम सदैव रहते हो, और तुम सदैव रहोगे।

तुम सर्वत्र हो, तुम हर वस्तु में हो, और तुम हर जगह से परे तथा हर वस्तु से परे भी हो।

तुम आकाश में हो और पाताल में हो। तुम व्यक्त हो और अव्यक्त हो, तुम सब लोकों पर हो, और समस्त लोकों से परे हो।

तुम तीनों भुवनों में हो, और तीन भुवनों से परे भी हो। तुम अगोचर हो और स्वतंत्र हो।

तुम सृष्टि के रचने वाले हो, स्वामियों के स्वामी हो, समस्त मनों और ह्रदयों के ज्ञाता हो, तुम सर्वशक्तिमान हो और सर्वव्यापी हो।

तुम अनंत ज्ञान हो, अनंत शक्ति हो, और अनंत आनंद हो।

तुम ज्ञान के महासागर हो, सर्वज्ञ हो, अनंत ज्ञान रखने वाले हो, तुम भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हो, और तुम स्वयं ज्ञान हो।

तुम पूर्ण दयामय हो और सतत परहितकारी हो।

तुम आत्माओं की आत्मा हो, और अनंत गुणों से सम्पन्न एक परमात्मा हो।

तुम सत्य, ज्ञान और परमानंद की त्रिमूर्ति हो।

तुम सत्य के मूल हो, प्रेम के महासागर हो।

तुम सनातन सत्ता हो, ऊँचों में सबसे ऊँचे हो, तुम प्रभु और परमेश्वर हो, तुम परब्रह्म हो, और परात्पर परब्रह्म भी हो। तुम परब्रह्म परमात्मा हो, अल्लाह हो इलाही हो, यजदान हो, अहूरमज्द हो, और प्रियतम ईश्वर हो।

तुम्हारा नाम एजद अर्थात एकमेव पूज्य है।

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श्री हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

इस पोस्ट में बजरंग बली श्री हनुमान जी की बहुत प्रचलित श्री हनुमान चालीसा जय हनुमान ज्ञान गुन सागर दी गयी है।

यह भी पढ़ें – श्री हनुमान जी की आरती

श्री हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

।। श्रीहनुमते नम: ।।
।। दोहा ।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मन मुकुर सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार॥

।। चौपाई ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर वबिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥

लाय सँजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

।। श्री हनुमान चालीसा दोहा ।। 

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

।। इति ।। 

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शिव जी की आरती – ॐ जय शिव ओंकारा..

इस पोस्ट में भगवान शिव जी की बहुत प्रचलित आरती ॐ जय शिव ओंकारा दी गयी है।

यह भी पढ़ें – गणेश जी की आरती – जय गणेश देवा..

भगवान शंकर जी की आरती – ॐ जय शिव ओंकारा

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पंचांनन राजे।
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी।
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें।
सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगें॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता।
जगकर्ता, जगभर्ता, जगससंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी।
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥

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संतोषी माता जी की आरती

इस पोस्ट में संतोषी माता जी की आरतीजय संतोषी माता दी गयी है।

संतोषी माता जी की आरती – Santoshi Maa Ki Aarti

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपने सेवक जन।
मैया जी के सेवक जन की, सुख सम्पति दाता॥
जय संतोषी माता॥

सुन्दर चीर सुनहरी, माँ धारण कीन्हो।
मैया माँ धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके, तन शृंगार कीन्हो॥
मैया जय संतोषी माता॥

गेरू लाल छटा छबि, बदन कमल सोहे।
मैया बदन कमल सोहे।
मंद हँसत करुणामय , त्रिभुवन मन मोहे॥
मैया जय संतोषी माता॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी, चँवर डुले प्यारे।
मैया चँवर डुले प्यारे।
धूप दीप मधु मेवा, भोग धरें न्यारे॥
मैया जय संतोषी माता ।

गुड़ और चना परम प्रिय, ता में संतोष कियो।
मैया ता में सन्तोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन विभव दियो॥
मैया जय संतोषी माता ।

शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सो ही।
मैया आज दिवस सो ही।
भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मो ही॥
मैया जय संतोषी माता ।

मंदिर जग मग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
मैया मंगल ध्वनि छाई।
बिनय करें हम सेवक, चरनन सिर नाई॥
मैया जय संतोषी माता ।

भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।
मैया अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे, इच्छित फल दीजै॥
मैया जय संतोषी माता ।

दुखी दरिद्री रोगी, संकट मुक्त किये।
मैया संकट मुक्त किये।
बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिये॥
मैया जय संतोषी माता ।

ध्यान धरे जो तेरा, वाँछित फल पायो।
मनवाँछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्द आयो॥
मैया जय संतोषी माता ।

शरण गहे की लज्जा, रखियो जगदम्बे।
मैया रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे॥
मैया जय संतोषी माता ।

संतोषी माता की आरती, जो कोई नर गावे।
मैया जो कोई नर गावे।
ऋद्धि सिद्धि सुख सम्पति, जी भर के पावे॥
मैया जय संतोषी माता ।

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